बताया हूं न कि दो दिनों तक दो पुरानी कहानियां आपको सुनानी हैं। इसकी एक बड़ी वज़ह है। इन कहानियों को लिख कर मैं खुद ही भूल चुका था। पर अब खुद भी याद कर रहा हूं आपको भी याद दिला रहा हूं।
कहानी दुबारा क्यों सुना रहा हूं, इसे फिर कभी बताऊंगा।
***
कई साल पहले एक रात हमारे घर की घंटी बजी।
तब हम पटना में रहते थे।
आधी रात को कौन आया?
पिताजी बाहर निकले। सामने दो लोग खड़े थे। एक पुरूष और एक महिला। हमारे घर के बरामदे में लोहे की ग्रिल लगी थी, जिसमें हम रात में ताला बंद कर देते और पूरा घर सुरक्षित हो जाता।
पिताजी ने ताला खोला। पूछा कि आप लोग कौन हैं, कहां से आए हैं। उन्होंने पिताजी के हाथ में एक चिट्ठी पकड़ाई। पिताजी ने चिट्ठी पढ़ी और खुश हो गए। उन्होंने आवाज़ देकर बुलाया, संजू बेटा बाहर आओ देखो ये लोग फलां जगह से आए हैं। इन्हें तुम्हारी बुआ ने भेजा है।
“बुआ ने भेजा है? वाह!”
अब हमारे लिए ये जानना ज़रूरी नहीं था कि वो कौन हैं, कहां से आए हैं।
उन्हें हमारी बुआ ने भेजा था, यही जान लेना बहुत बड़ी बात थी। सर्दी की वो रात थी, फटाफट उनके सोने के लिए एक बिस्तर का इंतजाम किया गया। हम दोनों भाई दो रजाइयों में लिपटे थे, हमारी एक रजाई ले ली गई और कहा गया कि दोनों भाई एक ही रजाई में घुस जाओ। एक रजाई नए मेहमान को देनी है। हमें याद है, हम पहली बार उनसे मिल रहे थे। पिताजी ने अपनी बड़ी दीदी और उनके पूरे परिवार का हाल पूछा। और ये जान लिया कि वो उनके जानने वाले हैं। मतलब हमारे रिश्तेदार नहीं, बुआ के जानने वाले हैं।
उनके साथ जो महिला थीं, उनकी तबीयत थोड़ी खराब थी और पटना मेडिकल कॉलेज-अस्पताल में उनका इलाज होना था। क्योंकि वो मेरी बुआ को जानते थे, और बुआ के छोटे भाई का परिवार पटना में था इसलिए ये तो सोचने की बात ही नहीं थी कि वो कहां जाएंगे। वो बिना किसी पूर्व सूचना के हमारे घर पहुंच गए थे। उनकी ट्रेन आनी तो शाम को थी, लेकिन ट्रेन के टाइम से न चलने का बुरा कौन मानता है।
ट्रेन बहुत लेट पहुंची थी और हमारे वो मेहमान बिना खाना-पीना खाए आधी रात में हमारे घर पहुंच गए थे। फटाफट खाना बना। सोने का जुगाड़ हुआ।
और सुबह उन्हें अस्ताल पहुंचाने का भी।
वो कोई हफ्ता भर हमारे घर रहे। हम खूब घुल-मिल गए। हम रोज साथ खाते और मस्ती करते। ऐसा लग रहा था मानों हम सदियों से एक दूसरे को जानते रहे हों। बुआ ने तिल की मिठाई भेजी थी। बुआ सारे संसार का ख्याल रखती थीं। भाई-भतीजे में तो उनकी आत्मा ही बसती थी।
उन्होंने अपने परिचित भेज दिए, हमने उन्हें रिश्तेदार बना लिया।
आप जान कर हैरान रह जाएंगे कि हम दुबारा कभी उस रिश्तेदार से नहीं मिल पाए, जो उस रात हमारे घर आए थे। लेकिन हम सब भाई बहनों के जेहन में उस रिश्ते की याद आज भी ताजा है। हम आज भी उनके आने और अपनी रजाई छिन जाने को याद कर खुश होते हैं।
जब मैं पच्चीस साल पहले भोपाल से दिल्ली नौकरी करने आया था तो मेरे मामा ने एक चिट्ठी अपने एक जज दोस्त के नाम लिख कर मुझे भेज दिया था। दिल्ली के किदवई नगर में वो रहते थे और मैं चिट्ठी लेकर उनके घर पहुंच गया। यकीन कीजिए जितने दिन उनके घर रहा, परिवार के एक सदस्य की तरह रहा। उनकी बेटियां मेरी बहनें बन गईं और उनका बेटा मेरा भैया। मुझे दफ्तर से आने में देर होती, तो वो चिंतित होते।
तब हमारे पास रिश्ते थे। लेकिन अब मैं जब सोचने बैठता हूं तो यही सोचता हूं कि क्या सबके पास रिश्ते हैं? क्या सचमुच रिश्ते हैं?
“अकेले में हम सिर्फ बोल सकते हैं, लेकिन जब हम रिश्तों के बीच होते हैं तो बातें करते हैं। अकेले में हम मजे कर सकते हैं, लेकिन जब हम रिश्तों के बीच होते हैं तो उत्सव मनाते हैं। अकेले में हम मुस्कुरा सकते हैं, लेकिन रिश्तों के बीच हम ठहाके लगाते हैं।”
ध्यान रखिएगा कि ये सब सिर्फ इंसानी रिश्तों में मुमकिन है।
आपके संजय सिन्हा रोज-रोज रिश्तों की कहानियां सिर्फ इसलिए लिखते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि आज आदमी सबके बीच रह कर भी अकेला हो गया है। सारे रिश्ते हैं, लेकिन कोई रिश्ता बचा नहीं है। हम सब अपनी ज़िंदगी जीने की तैयारी में इतने व्यस्त हो गए हैं कि हमारे पास खुद के लिए वक्त नहीं रहा।
अब संजय सिन्हा कहीं जाते हैं तो होटल बुक कराते हैं। पता नहीं सारे रिश्ते कहां चले गए।
आप में से अगर किसी के पास बुआ के उस पड़ोसी का कोई रिश्ता बचा हो, तो यकीनन आप भाग्यशाली हैं।
मेरा क्या है, मैं तो अपने उसी भाग्य की तलाश में हर रोज मुंह उठाए आपके पास पहुंच जाता हूं।
story from #SanjaySinha fb wall
Author: admin
आज नहीं तो कल इस दुनिया से चले जाना है – सूफ़ी कथा
दो घोड़े होते हैं जो बरसों से एक दूसरे के साथ एक तांगा चला रहे होते हैं.. शुरुवात में दोनों में बहुत प्यार होता है मगर फिर धीरे धीरे एक घोड़े को दूसरे घोड़े से चिढ़ होने लगती है.. वो दूसरे घोड़े की हर बात में नुक्स निकालने लगता है.. कभी कहता है कि तुम तेज़ दौड़ते हो कभी धीरे, कभी उस से कहता है कि वो उसकी बात नहीं सुनता.. दूसरा घोड़ा इस घोड़े की हर बात मानने की कोशिश करता है मगर इस घोड़े के पास रोज़ कोई न कोई नई शिक़ायत होती है उसको लेकर
एक दिन दूसरा घोड़ा मर जाता है.. अब इस घोड़े को, जो हमेशा उस से शिकायत करता था, उसे बहुत धक्का लगता है.. उसे लगता है जैसे उसका सब कुछ ख़त्म हो गया.. वो बहुत उदास हो जाता है और अपने उलाहने और शिकायतें याद कर के ख़ूब रोता है.. अब उसे पता लगता है कि वो घोड़ा उसके जीवन मे क्या अहमियत रखता था
कुछ दिन बाद मालिक एक नया घोड़ा लाता है.. इस बार ये घोड़ा सोचता है कि अबकी बार वो इस घोड़े के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करेगा और उस से दोस्ती बनाये रखेगा.. कुछ महीने सब ठीक चलता है मगर फिर धीरे धीरे इस घोड़े को इस नए घोड़े से फिर वैसे ही परेशानी शुरू हो जाती है.. वो फिर इस नए घोड़े को उसी तरह परेशान करने लगता है जैसे वो पुराने वाले को करता था.. मगर फिर उसे अपने इस व्यवहार का एहसास होता है और वो सोचता है कि कहीं वो फिर अपने इस नए दोस्त को अपने इस व्यवहार से खो न दे.. इस बात के लिए वो परेशान होकर अस्तबल के एक सबसे समझदार ज्ञानी गधे के सामने अपनी इस समस्या का ज़िक्र करता है
ज्ञानी गधा कहता है “यही क्या कम है कि तुम्हें इस बात का एहसास हुआ कि तुमसे ग़लती हो रही है.. लोग पूरी उम्र यही करते रहते हैं मगर उन्हें कभी इसका एहसास ही नहीं होता है.. इसलिए तुम्हारा इस बात को समझना ही सुधार की दिशा में पहला क़दम है.. अब सवाल ये आता है कि क्या तुम इस बात को सच मे सुधारना चाहते हो या फिर ऐसे ही मुझ से अपनी ग़लती सुना कर अपने अहंकार को पोषित करके ख़ुश हो जाना चाहते हो?”
घोड़ा आंख में आंसू भर कर कहता है कि उसे अपनी इस ग़लती को सच मे सुधारना है
गधा कहता है “ठीक है फिर.. अगर तुम चाहते हो कि आज के बाद तुम अपने किसी भी प्यारे के साथ ये व्यवहार न करो तो एक बात का हमेशा ध्यान रखना.. और इस बात का ध्यान तुमको सोते जागते, उठते बैठते हमेशा रखना, और वो ध्यान ये है कि जिस किसी के साथ भी तुम इस समय हो उसे आज नहीं तो कल इस दुनिया से चले जाना है.. और वो तो इस दुनिया से जाएगा ही साथ साथ तुम को भी यहां से चले जाना है.. तुम्हारा तांगा, तुम्हारा मालिक, तुम्हारा दूसरा साथी घोड़ा, सब से तुम्हें आज नहीं तो कल बिछड़ना ही है.. ये जो छूटने के भाव है इसे दिन रात ऐसे याद रखो कि ये तुम्हारे अवचेतन में बस जाए.. और जिस दिन ये भाव पूरी तरह तुम्हारे भीतर बैठ गया उस दिन के बाद तुमको इस दुनिया मे किसी से कोई शिकायत नहीं रहेगी.. सब के प्रति तुम्हारे भीतर सिर्फ़ प्रेम भाव ही होगा.. ध्यान रखना कि जीवन मे जब तुम किसी से बिछड़ते हो तो उस समय तुम सबसे प्रेमपूर्ण होते हो.. इसलिए ये बिछड़ने का ध्यान बना रहे हमेशा.. ये भाव तुम्हें दूसरों के प्रति नफ़रत से बचाएगा.. और इस भाव को साध लेने के बाद किसी एक दिन तुम इस भाव को भी समझ सकोगे कि अब तुम्हें उसकी तलाश करनी है जो तुमसे कभी न बिछड़ेगा”
ज्ञानी गधे की बात सुनकर घोड़े की आंखों में आंसू आ जाते हैं.. उसे अपना बिछड़ा हुवा साथी घोड़ा याद आता है.. और वो अपने नए साथी घोड़े को देखता है जिसमे उसे अपने पुराने साथी घोड़े की झलक दिखाई देती है.. वो अस्तबल और सारी चीज़ों को एक एक कर ऐसे देखता है जैसे कल ये सब उस से बिछड़ जाएंगे.. धीरे धीरे.. समय बीतने के साथ वो घोड़ा जीवन और इसके तमाम बंधनों और नफ़रतों से मुक्त होने लगता है
(सूफ़ी कथा)
New Hindi jokes 2018
In this i bring some new jokes in hindi
Enjoy
लड़कियों के पास जब कुछ करने को नहीं होता तब वो ?
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मोहल्ले की ट्यूशन वाली मेम बन जाती हैं
???
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ऑस्ट्रेलिया एक बहुत महंगा देश है। _? हालांकि यह बहुत महंगा है, पर सार्वजनिक सेवा बहुत अच्छी है।
भारत से आस्ट्रेलिया एक परिवार छुट्टियों पर यात्रा कर रहा था। साथ मे उनके पिता भी थे।
राजमार्ग के मध्य में वे लोग कार से जा रहे थे। एक स्थानीय महिला उनके के पीछे पीछे अपनी कार चला रही थी..
उसने अचानक कार के खिड़की से बाहर आने वाले एक वृद्ध पुरूष का सिर देखा। उसने देखा कि वह रक्त की उल्टी कर रहा था..उसने अपने कैमरे में ये दृश्य कैद कर लिया तथा तत्काल एम्बुलेंस सेवा के लिए पुलिस को इत्तिला कर दी..
कुछ ही मिनटों के भीतर, हेलीकॉप्टर एम्बुलेंस मौजूद हो गयी ।
पिता को तुरंत स्ट्रेचर पर लेटा दिया गया और ऑक्सीजन शुरू कर दी गयी..
परिवार को उन सेवाओं के लिए 20 लाख रुपये का भुगतान करना पड़ा …
और हाँ …
महत्व की बात यह थी कि वह रक्त की उल्टी नही थी..वह तो गुटका थूका था और पुत्र अभी भी इसी खोजबीन में था कि पिता गुटका भारत से कहाँ छुपा कर लाये थे … ????
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*महिलाओं के लिए एक उत्तम योगासन ??*
*सबसे पहले ,*
*एक चेयर लें और उस पर बैठ जाएँ ,*
*सिर को पीछे टिका लें ,*
*सामने एक स्टूल रखें और उस पर अपने दोनों पाँव रख लें ,*
*खूब गहरी साँस लें और बोलें…*
*” चूल्हे में जाए घर के सारे काम।। “*
????????
~~~~~~~~~~~~~~~~
दिन में इतनी बार तो मुझे “माँ”
भी नहाने के लियें नहीं बोलती…..
जितने की बैंक और टेलिकॉम
वाले आधार लिंक करने के लिए बोलते हैं.
???
दलित चिंतक उफ तक नही करता
आपको जानकर आश्चर्य होगा की पूरे भारत मे सिर्फ दो यूनिर्वसिटी ऐसी है जो भारतीय संविधान को न मानकर दलितों को आरक्षण नही देता….
ओर वो है अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया इस्माइला यूनिवर्सिटी ….
फिर भी कोई दलित चिंतक उफ तक नही करता ।
Happy lohri massages or sms
??May ??
The Enthusiasm and
Good feelings of
❤️” HAPPY ENERGY “❤️
Shines through your life
To endure you to serve
SWEETNESS and
HAPPINESS
?Happy Lohri ?
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
?Wow….!! ?
Let\’s Begin ☀️
Happy Journey towards Sun
❄️Let\’s Say Sayonara
To long nights of Winter
Let\’s Welcome ??
Long days of Summer
and celebrate this Lohri
with abundance of J❤️y
?Happy Lohri ?
~~~~~~~~~~~~~~~
??May ??
The Enthusiasm and
Good feelings of
❤️” HAPPY ENERGY “❤️
Shines through your life
To endure you to serve
SWEETNESS and
HAPPINESS
?Happy Lohri ?
Happy new year 2018 text massages
Yeah….!!
Countdown has begun
…. and Turning 18
❤️Feels Gooooood
Feels Younger ?
?Feels Beautiful
Feels Romantic ?
?Feels Amazing
Feels Awesome ?
?Feels Majestic
just be ready to Feel
and Touch me soon..!!!
Your \’s Best-ever
❤️2018?
Dear 2017??
Run Fast
Run A Little Faster
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2018
is waiting at the finish line
to start
?NEW ADVENTURES ?
?NEW CHANCES?
☘️NEW FORTUNE☘️
?NEW ENDEAVOUR ?
?☘️???????
Gentle Good by to 2017
Closing of 2017
Is such an interesting
Time of Reflection..!!!
….. and it\’s a combination of
☘️Satisfactions
Wonders☘️
☘️Overwhelm
Gratitude ☘️
☘️Incompletion
Beauty ?
☘️Love and
Anticipation all at once..!!!
Now Be Ready to say…
Passionate Welcome to 2018
❤️????????❤️
How to creat education apps on Android
In this i am going to tell you that how can we creat education apps from home.
Education is most important part of life. Day by day education goes with technology soo everyone can learn from it.
What you need for creat android apps
- A Windows or mac laptop
- Some basic knowledge of coding
- A Google doveloper account
- Or time
If you have all those things then you are ready to make aaps.
In next post i will tell more tips for creat apps
jinkaa man padhai study me nahi lagta
Ye post un baccho or bado ke liye h jinkaa man padhai study me nahi lagta. Ya jinko padh na likhna ek problom lagta h. Ye post fb Master sanjay sinha ji ki profile se li gayi h. App bhi unhe vnha follow kar sakte hai. Plz isse dhyan se padhe or bade or baccho ke sath share karen.
मेरी आज की कहानी बड़ों से ज्यादा बच्चों के लिए है। अब बच्चे तो मेरे दोस्त हैं नहीं, तो बच्चों के पापाओं और बच्चों की मम्मियों से मैं अनुरोध करूंगा कि मेरी आज की पोस्ट वो अपने बच्चों को ज़रूर सुनाएं।
कल मैं दिल्ली के एक बड़े शॉपिंग मॉल में गया। वहां मुझे एक दुकान में स्टोर मैनेजर से मिलना था। मैंने दुकान में खड़े सिक्योरिटी गार्ड से पूछा कि स्टोर मैनेजर कहां मिलेंगे। गार्ड मुझे अपने साथ मैनेजर के केबिन तक लेकर गया। वहां मुझे कमरे में एक दुबला-पतला युवक बैठा दिखा। उसने मोटा सा चश्मा लगा रखा था। गार्ड ने मुझे दूर से दिखाया कि यही मैनेजर हैं।
मैं मैनेजर के पास गया। मुझे उससे उसके स्टोर से खरीदे किसी सामान की शिकायत करनी थी।
मैनेजर ने ध्यान से मेरी बात सुनी और उसने मुझसे बैठने का इशारा किया और कहा कि वो इस सामान के विषय में किसी से फोन पर बात करके अभी लौट कर आ रहा है।
मैं मैनेजर का इंतज़ार करने लगा। संजय सिन्हा मैनेजर का इंतज़ार करने लगें, ये कितनी देर तक मुमकिन रहता?
मिनट भर बाद ही मुझे लगने लगा कि बहुत देर हो गई है।
कुछ पत्रकारों को छोटे लोगों पर रौब दिखाने की बुरी बीमारी हो जाती है। मुझे कल पता चला कि मैं भी इससे अछूता नहीं। एक मिनट बाद ही मुझे लगने लगा कि एक घंटा बीत गया है। मुझ जैसे पत्रकार को तो बड़े-बड़े नेता और अभिनेता भी इंतज़ार करने के लिए नहीं कहते, फिर ये अदना सा स्टोर मैनेजर मुझसे कह गया कि आप यहां बैठ कर इंतज़ार कीजिए!
***
मैं मैनेजर के कमरे से बाहर निकल आया, तो मैंने देखा कि वो छह फीट का गार्ड वहीं बाहर खड़ा है। अपनी आदत के मुताबिक मैं गार्ड से बात करने लगा।
“ये तुम्हारा मैनेजर कहां गया?”
“साहब, वो उस डिपार्टमेंट में गए हैं, जहां से आपने सामान लिया था।”
“ये मरियल सा चश्माधारी जानता नहीं कि मैं किसी का इंतज़ार नहीं करता। मैं सामान वापस करने आया था, फटाफट वापस करना चाहिए था।”
“पर साहब, सामान वापसी का नियम यही है। उस डिपार्टमेंट में उसके विषय में रिपोर्ट लिखानी पड़ती है। मैनेजर उनसे जवाब-तलब करते हैं कि गड़बड़ी क्यों हुई। फिर वो वाउचर पर साइन करके आपको दे देंगे।”
पत्रकारों को एक बीमारी बेवजह बात खींचने की भी होती है। मैं भी लगा रहा उस गार्ड से।
“तुम तो इतने हैंडसम हो। छह फीट के हो। तुम मैनेजर से डरते हो क्या?”
“साहब, मेरा हैंडसम होना, मेरा छह फीट का होना कोई मायने नहीं रखता। वो आदमी मुझसे अधिक पढ़ा लिखा है।”
“पढ़ा-लिखा है तो क्या हुआ, तुमसे ज़्यादा शक्तिशाली थोड़े न है?
“कैसी बातें करते हैं साहब! उसके पास कलम की ताकत है। यह तो आप भी जानते ही होंगे कि शरीर की ताकत से अधिक ताकत कलम में होती है।”
“फिर तुमने पढ़ाई क्यों नहीं की?”
“इस बात का तो ज़िंदगी भर अफसोस रहेगा। मां-बाप स्कूल भेजते थे, मैं ही स्कूल से भाग कर खेलने निकल जाता था। मां-बाप ने गांव में टीचर को घर बुला कर भी पढ़ाने की कोशिश की, पर अफसोस की मेरी किस्मत में पढ़ाई थी ही नहीं।”
अब मुझे लगने लगा कि मैंने बेकार में ये टॉपिक इस गार्ड से छेड़ दिया। उसे सांत्वना देने के लिए मैंने कहा कि गांव में पढ़ाई का माहौल भी तो नहीं होता। स्कूल-कॉलेज भी ठीक नहीं होते।
“नहीं साहब! ये सही बहाना नहीं है पढ़ाई न कर पाने के लिए। गांव में भी सरकार ने स्कूल खोले हैं। और तो और थोड़ी दूर ही शहर में कॉलेज भी है। नहीं पढ़ने के हज़ार बहाने होते हैं। मैं तो कहता हूं कि जो भी यह बहाना करता है कि उसे पढ़ने का मौका नहीं मिला, वो एकदम झूठ बोलता है। मैं यह तो मान सकता हूं कि शहर के स्कूलों में अलग टीचर होते होंगे, पर गांव में भी वही किताबें पढ़ाई जाती हैं। असल में पढ़ वही बच्चा सकता है, जिसके सामने पढ़ने की मजबूरी हो या फिर उसे पढ़ने का शौक हो।”
“तुम इतना समझदार हो, फिर तो तुम्हें पढ़ाई करनी चाहिए थी।”
“बस साहब इसी को किस्मत कहते हैं। ये जो मैनेजर है न! वो मेरे गांव का ही है। वो भी उसी स्कूल में पढ़ा है। बाद में ये आगे पढ़ाई के लिए शहर चला गया। पर अपने बूते पर गया। हम ढेर सारे बच्चे जो आज छह फीट के हैं, बचपन में इसका मज़ाक उड़ाया करते थे। जिस दिन स्कूल में मास्टर नहीं आते हम वहां से निकल कर दो मील दूर सिनेमा देखने पैदल चले जाते थे। ये पेड़ के नीचे बैठ कर कुछ-कुछ पढ़ता था। मेरे पिताजी के पास जमीन थी, इसके पास कुछ नहीं था। मुझे जमीन का घमंड था। पिताजी ने बहुत कोशिश की कि मैं पढ़ लूं। पर मैं नहीं पढ़ पाया। फिर पिताजी की बीमारी में जमीन बिक गई। मैं बेरोजगार बैठा था। गांव में कोई पूछने वाला नहीं था। बहुत दिनों बाद यही लड़का, जिसे आप मरियल कह रहे हैं, मुझसे मिलने आया। मैंने इससे अपनी तकलीफ साझा की। ये मुझे अपने साथ दिल्ली लेकर आया। मुझे किसी तरह यहां इसने नौकरी दिलाई। फिलहाल खर्चा-पानी चल रहा है।
साहब ये तो कहता है कि अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा, अभी भी प्राइवेट पढ़ाई पूरी करो। ये मुझे आज भी पढ़ने के लिए उकसाता है। इसने गांव के ढेर सारे बच्चों की, जो कुछ नहीं करते थे, अपनी तरफ से मदद की है। ये कहता है कि सरकार को कोसना बंद करो। लोगों पर हंसना बंद करो। पढ़ाई करो। नहीं तो एक दिन लोग तुम पर हंसेंगे, तुम्हें कोसेंगे।
साहब! मैं तो कहता हूं कि आप भी उन बच्चों को, जो बच्चे स्कूल से भाग कर यहां मॉल में शॉपिंग करते या सिनेमा देखते नज़र आएं, समझाइएगा कि आज की ये मस्ती कल तुम्हें भारी पड़ेगी।”
***
मैं हैरान होकर उस गार्ड की बातें सुनता रहा। सोचता रहा।
फिर मुझे लगा कि कुल दो मिनट में यह गार्ड मुझे कितनी बड़ी बात समझा गया।
“लोगों को कोसना बंद करो। लोगों पर हंसना बंद करो। पढ़ाई करो। नहीं तो एक दिन लोग तुम पर हंसेंगे, तुम्हें कोसेंगे।”
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मैनेजर वापस आ चुका था। उसने मेरे पैसे रिफंड करने का वाउचर मुझे दिया। असुविधा के लिए स्टोर की ओर से मुझसे माफी मांगी। हाथ मिला कर चला गया।
taken from #Rishtey Sanjay Sinha fb wall